उठान – तीन ताल
Uthan – उठान का शाब्दिक अर्थ है उठने की क्रिया । यह टुकड़ा या परन का एक विशेष प्रकार है । उठान टुकड़े की अपेक्षा जोरदार और परन की अपेक्षा छोटा होता है । इसका प्रयोग नृत्य के आरम्भ में या पूरब अंश के तबला वादक अपने स्वतन्त्र – वादन में विशेष विधि से प्रयोग करते हैं ।
उठान को कुछ लोग मुखड़े के नाम से भी पुकारते हैं । गायन तथा वादन के आरम्भ में सम पकड़ने के लिए जिस बोल समूह का प्रयोग किया जाता है ; सांगीतिक भाषा में उसे उठान के नाम से पुकारा जाता है । उठान के द्वारा श्रोताओं के मध्य या समक्ष चमत्कार तब उत्पन्न हो जाता है , जब सम पर आने के लिए आरम्भ में ही उठान का जोरदार टुकड़ा बजाया जाता है ।
उठान के प्रयोग से वादन शैली में प्रभाविकता की उत्पत्ति होती है , इसी कारणवश अपने वादन को प्रभावी बनाने हेतु तबला वादक उठान का प्रयोग करता है । उठान की रचना परनों से भिन्न होती है । इसमें ती , ता , तक आदि बोलों की अधिकता रहने के साथ – साथ रोचकता भी रहती है , जो वादक की वादन शैली से परिलक्षित होती है । इसमें कई प्रकार की लयों का आधिक्य रहता है , परन्तु जो बोल प्रारम्भ में लेकर उठाया जाता है , वास्तव में वही बोल उठान कहलाने का अधिकारी होता है । अत : गायन – वादन में ‘ सम ‘ पकड़ने हेतु , जो बोल समूह प्रयोग में लाया जाता है , वह उठान कहलाता है ।
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