संयुक्त हस्त मुद्राएं || Samyukta Hasta Mudra || नृत्‍य में मुद्राओं की भूमिका – 2

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नृत्‍य में मुद्राओं की भूमिका

संयुक्त हस्त मुद्राएं (Samyukta Hasta Mudras) भारतीय शास्त्रीय नृत्य और योग में प्रयुक्त होती हैं। ये मुद्राएं दोनों हाथों का उपयोग करके की जाती हैं और इनका विशेष महत्व होता है। प्रत्येक मुद्रा का विशिष्ट अर्थ और अभिव्यक्ति होती है।

यहाँ कुछ प्रमुख संयुक्त हस्त मुद्राओं का वर्णन है:

1. **Anjali Mudra (अंजलि मुद्रा)**: दोनों हाथों की हथेलियों को एक-दूसरे से जोड़कर की जाती है। इसका उपयोग अभिवादन, प्रार्थना और सम्मान दिखाने के लिए होता है।

2. **Kapota Mudra (कपोत मुद्रा)**: अंजलि मुद्रा से थोड़ा अलग, इसमें हथेलियाँ मिलती हैं लेकिन उंगलियों के सिरे अलग रहते हैं। यह विनम्रता और बातचीत का प्रतीक है।

3. **Karkata Mudra (कर्कटा मुद्रा)**: दोनों हाथों की उंगलियों को आपस में जोड़कर की जाती है, जिससे एक प्रकार की माला बनती है। यह मुद्रा शक्ति और सामर्थ्य का प्रतीक है।

4. **Swastika Mudra (स्वस्तिक मुद्रा)**: दोनों हाथों की कलाईयों को जोड़कर बनाया जाता है। यह शुभता और सुरक्षा का प्रतीक है।

5. **Dola Mudra (डोला मुद्रा)**: हाथों को शरीर के बगल में रखते हुए हथेलियाँ नीचे की ओर रहती हैं। इसका उपयोग विश्राम और तैयारी के लिए होता है।

6. **Pushpaputa Mudra (पुष्पपुट मुद्रा)**: दोनों हाथों की हथेलियों को कप के आकार में मिलाकर, ऊपर की ओर खुला रखा जाता है। इसका उपयोग फूलों के अर्पण और देवताओं को भेंट करने के लिए होता है।

7. **Shivalinga Mudra (शिवलिंग मुद्रा)**: बाएँ हाथ की हथेली को कप के रूप में रखते हुए, दायाँ हाथ मुट्ठी बनाकर बाएँ हाथ के ऊपर रखा जाता है। यह शिवलिंग का प्रतीक है।

8. **Garuda Mudra (गरुड़ मुद्रा)**: दोनों हाथों को परस्पर क्रॉस करके उंगलियों को जोड़ लिया जाता है। यह गरुड़ पक्षी का प्रतीक है, और इसका उपयोग उड़ान और गति को दर्शाने के लिए किया जाता है।

9. **Naga Bandha Mudra (नाग बंध मुद्रा)**: दोनों हाथों की उंगलियों को जोड़कर आपस में क्रॉस किया जाता है, जिससे सर्प का बंधन बनता है। यह सुरक्षा और शक्ति का प्रतीक है।

10. **Matsya Mudra (मत्स्य मुद्रा)**: दोनों हाथों की उंगलियों को जोड़कर मछली का आकार बनाया जाता है। यह मछली का प्रतीक है और इसका उपयोग जल से संबंधित कथाओं में होता है।

11. **Kataka-vardhana Mudra (कटक-वर्धन मुद्रा)**: दोनों हाथों को कंधे की ऊंचाई पर उठाकर, उंगलियों को गूंथकर और अंगूठे को ऊपर की ओर रखते हुए बनाया जाता है। यह आशीर्वाद और उत्सव का प्रतीक है।

12. **Bherunda Mudra (भेरुंड मुद्रा)**: दोनों हाथों की उंगलियों को परस्पर क्रॉस कर, और अंगूठों को भी क्रॉस कर बनता है। यह एक शक्तिशाली मुद्रा है जो भेरुंड पक्षी का प्रतीक है।

13. **Vajra Mudra (वज्र मुद्रा)**: दोनों हाथों की उंगलियों को आपस में गूंथकर और अंगूठों को ऊपर की ओर रखते हुए बनाया जाता है। यह वज्र (गर्जन) का प्रतीक है और इसका उपयोग शक्ति और दृढ़ता को व्यक्त करने के लिए किया जाता है।

14. **Yoni Mudra (योनि मुद्रा)**: दोनों हाथों की उंगलियों को मिलाकर, अंगूठों को जोड़कर और बाकी उंगलियों को फैलाकर योनि का आकार बनाया जाता है। यह स्त्रीत्व और सृजनशीलता का प्रतीक है।

15. **Samputa Mudra (सम्पुट मुद्रा)**: दोनों हाथों की हथेलियों को जोड़कर, उंगलियों को गोलाकार आकार में मोड़कर बनाया जाता है, जिससे एक कम्पार्टमेंट (सम्पुट) बनता है। इसका उपयोग किसी चीज़ को छुपाने या सुरक्षित रखने के भाव को व्यक्त करने के लिए किया जाता है।

16. **Ganesha Mudra (गणेश मुद्रा)**: दोनों हाथों को ह्रदय के पास लाकर, बाएं हाथ की उंगलियों को दाएं हाथ की उंगलियों से जोड़कर और दोनों हाथों को खींचने की मुद्रा में रखा जाता है। यह बाधाओं को दूर करने और नए रास्तों को खोलने का प्रतीक है।

17. **Makara Mudra (मकर मुद्रा)**: एक हाथ की हथेली को खोलकर दूसरे हाथ की उंगलियों को हथेली के ऊपर रखा जाता है। यह मगरमच्छ का प्रतीक है और इसका उपयोग पानी और सुरक्षा से संबंधित कथाओं में होता है।

18. **Kurma Mudra (कूर्म मुद्रा)**: दोनों हाथों की उंगलियों को आपस में जोड़कर कछुए का आकार बनाया जाता है। यह स्थिरता और धैर्य का प्रतीक है।

19. **Utsanga Mudra (उत्संग मुद्रा)**: दोनों हाथों को शरीर के ऊपर लाकर कोहनी को मोड़कर, हाथों को कंधों के पास रखते हुए बनाया जाता है। यह आलिंगन और स्नेह का प्रतीक है।

20. **Shankha Mudra (शंख मुद्रा)**: एक हाथ की हथेली को खोलकर अंगूठे को अंदर की ओर मोड़ते हुए और दूसरे हाथ की उंगलियों को इसके चारों ओर लपेटते हुए शंख का आकार बनाया जाता है। यह पवित्रता और धार्मिकता का प्रतीक है।

21. **Chakra Mudra (चक्र मुद्रा)**: दोनों हाथों की उंगलियों को जोड़कर, अंगूठे और मध्यमा उंगलियों को मिलाकर और बाकी उंगलियों को फैलाकर चक्र का आकार बनाया जाता है। यह चक्र (विह्वलता) का प्रतीक है और ऊर्जा का संतुलन बनाए रखने के लिए किया जाता है।

22. **Pasha Mudra (पाश मुद्रा)**: दोनों हाथों की उंगलियों को जोड़कर रस्सी (पाश) का आकार बनाया जाता है। यह बंधन और पकड़ का प्रतीक है।

23. **Kilaka Mudra (किलक मुद्रा)**: दोनों हाथों की उंगलियों को आपस में गूंथकर, अंगूठों को ऊपर की ओर रखते हुए बनाया जाता है। यह प्रेम और स्नेह का प्रतीक है।

24. **Matsya Avatar Mudra (मत्स्य अवतार मुद्रा)**: दोनों हाथों की उंगलियों को जोड़कर मछली का आकार बनाया जाता है, लेकिन इसे भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार के रूप में प्रदर्शित किया जाता है।

25. **Varaha Avatar Mudra (वराह अवतार मुद्रा)**: दोनों हाथों की उंगलियों को मिलाकर सूअर (वराह) का आकार बनाया जाता है, भगवान विष्णु के वराह अवतार के प्रतीक के रूप में।

26. **Narasimha Avatar Mudra (नरसिंह अवतार मुद्रा)**: दोनों हाथों की उंगलियों को जोड़कर सिंह (नरसिंह) का आकार बनाया जाता है, भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार के रूप में।

27. **Vamana Avatar Mudra (वामन अवतार मुद्रा)**: एक हाथ से अंजलि मुद्रा बनाकर और दूसरे हाथ से तर्जनी अंगुली को ऊपर की ओर रखते हुए वामन अवतार को दर्शाया जाता है।

28. **Parashurama Avatar Mudra (परशुराम अवतार मुद्रा)**: दोनों हाथों को त्रिशूल के आकार में रखकर और एक हाथ से परशु (फरसा) का संकेत करते हुए प्रदर्शित किया जाता है।

29. **Rama Avatar Mudra (राम अवतार मुद्रा)**: एक हाथ से धनुष का आकार बनाकर और दूसरे हाथ से बाण का संकेत करते हुए भगवान राम का रूप दिखाया जाता है।

30. **Krishna Avatar Mudra (कृष्ण अवतार मुद्रा)**: एक हाथ से बांसुरी बजाने का संकेत करते हुए और दूसरे हाथ से गोवर्धन पर्वत उठाने का संकेत करते हुए भगवान कृष्ण का रूप दिखाया जाता है।

31. **Buddha Avatar Mudra (बुद्ध अवतार मुद्रा)**: दोनों हाथों की हथेलियों को जोड़कर, ध्यान मुद्रा में रखते हुए भगवान बुद्ध का रूप दिखाया जाता है।

32. **Kalki Avatar Mudra (कल्कि अवतार मुद्रा)**: एक हाथ में तलवार का संकेत करते हुए और दूसरे हाथ से अश्वारोहण का संकेत करते हुए भगवान विष्णु के भविष्य के अवतार का रूप दिखाया जाता है।

33. **Samyukta Kartari Mudra (संयुक्त कर्तरी मुद्रा)**: दोनों हाथों की उंगलियों को तिरछी स्थिति में रखकर कतरनी (चाकू) का आकार बनाया जाता है। यह विभाजन और काटने का संकेत है।

34. **Hamsasya Mudra (हंसास्य मुद्रा)**: एक हाथ से हंस की चोंच का आकार बनाते हुए, दूसरे हाथ से हंस की गर्दन का आकार बनाया जाता है। यह सुंदरता और सौम्यता का प्रतीक है।

35. **Ankusha Mudra (अंकुश मुद्रा)**: एक हाथ से अंकुश (हाथी को नियंत्रित करने वाला हुक) का संकेत करते हुए, दूसरे हाथ से हाथी का संकेत बनाया जाता है। यह नियंत्रण और दिशा का प्रतीक है।

36. **Ashirvada Mudra (आशीर्वाद मुद्रा)**: एक हाथ से आशीर्वाद देने का संकेत करते हुए, दूसरे हाथ से आशीर्वाद प्राप्त करने का संकेत बनाया जाता है। यह आशीर्वाद और शुभकामनाओं का प्रतीक है।

37. **Gada Mudra (गदा मुद्रा)**: एक हाथ से गदा (मेस) का आकार बनाते हुए, दूसरे हाथ से पकड़ने का संकेत बनाया जाता है। यह शक्ति और शक्ति का प्रतीक है।

38. **Nagabandha Mudra (नागबंधन मुद्रा)**: दोनों हाथों की उंगलियों को जोड़कर नाग (सर्प) का बंधन बनाते हुए, शरीर के चारों ओर लपेटा जाता है। यह सुरक्षा और बंधन का प्रतीक है।

39. **Vajrapradama Mudra (वज्रप्रदामा मुद्रा)**: दोनों हाथों की उंगलियों को मिलाकर और अंगूठों को ऊपर की ओर रखते हुए, हथेलियों को कंधों के पास रखा जाता है। यह आत्मविश्वास और दृढ़ता का प्रतीक है।

40. **Bhumi Sparsha Mudra (भूमि स्पर्श मुद्रा)**: एक हाथ से धरती को स्पर्श करते हुए, दूसरे हाथ को ध्यान मुद्रा में रखते हुए भगवान बुद्ध की मुद्रा को दर्शाया जाता है। यह धरती की साक्षी और सत्य का प्रतीक है।

41. **Dhyana Mudra (ध्यान मुद्रा)**: दोनों हाथों को गोद में रखकर, दायां हाथ बाएं हाथ के ऊपर रखते हुए, अंगूठे को जोड़कर बनाया जाता है। यह ध्यान और आत्म-साक्षात्कार का प्रतीक है।

42. **Hridaya Mudra (हृदय मुद्रा)**: दोनों हाथों की उंगलियों को जोड़कर हृदय के पास रखते हुए, अंगूठों को मिलाते हुए बनाया जाता है। यह प्रेम और करुणा का प्रतीक है।

43. **Surabhi Mudra (सुरभि मुद्रा)**: दोनों हाथों की उंगलियों को इस तरह से जोड़कर कि अंगुलियों की दिशाएँ विपरीत हो, बनाया जाता है। यह धन और समृद्धि का प्रतीक है।

44. **Ganesha Mudra (गणेश मुद्रा)**: एक हाथ से अंजलि मुद्रा बनाकर और दूसरे हाथ से तर्जनी अंगुली को ऊपर की ओर रखते हुए गणेश जी का प्रतीकात्मक रूप दर्शाया जाता है। यह बाधाओं को दूर करने और नए रास्तों को खोलने का प्रतीक है।

45. **Ksepana Mudra (क्षेपण मुद्रा)**: दोनों हाथों को जोड़कर और उंगलियों को ऊपर की ओर मिलाकर, फिर उन्हें नीचे की ओर मोड़कर बनाया जाता है। यह ऊर्जा और नकारात्मकता को निकालने का संकेत है।

46. **Uttarabodhi Mudra (उत्तरबोधि मुद्रा)**: दोनों हाथों को ऊपर की ओर उठाकर, उंगलियों को मिलाते हुए और अंगूठों को नीचे की ओर रखते हुए बनाया जाता है। यह उच्चतम ज्ञान और आत्मबोध का प्रतीक है।

47. **Prithvi Mudra (पृथ्वी मुद्रा)**: अनामिका उंगली और अंगूठे को मिलाकर, बाकी उंगलियों को सीधा रखते हुए बनाया जाता है। यह पृथ्वी तत्व का संतुलन बनाए रखने का संकेत है।

48. **Varada Mudra (वरद मुद्रा)**: एक हाथ से आशीर्वाद देने का संकेत करते हुए, दूसरे हाथ को गोद में रखते हुए बनाया जाता है। यह दान और कृपा का प्रतीक है।

49. **Prana Mudra (प्राण मुद्रा)**: अनामिका और छोटी उंगली को अंगूठे से मिलाकर, बाकी उंगलियों को सीधा रखते हुए बनाया जाता है। यह जीवन शक्ति और ऊर्जा का संतुलन बनाए रखने का संकेत है।

50. **Apana Mudra (अपान मुद्रा)**: मध्यमा और अनामिका उंगली को अंगूठे से मिलाकर, बाकी उंगलियों को सीधा रखते हुए बनाया जाता है। यह अपान वायु को संतुलित करने का संकेत है।

संयुक्त हस्त मुद्राओं की यह विस्तृत सूची भारतीय शास्त्रीय नृत्य, योग और आध्यात्मिक साधना में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाती है। इन मुद्राओं के अभ्यास से न केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक लाभ भी प्राप्त होते हैं।

पौराणिक कथाओं के अनुसार नृत्य और रंगमंच की कला का कार्यभार भगवान ब्रह्मा ने संभाला था और इस प्रकार ब्रह्मा ने अन्य देवताओं की सहायता से नाट्य वेद की रचना की। बाद में भगवान ब्रह्मा ने इस वेद का ज्ञान पौराणिक ऋषि भरत को दिया, और उन्होंने नाट्यशास्त्र की रचना की। भरत मुनि का नाट्य शास्त्र नृत्यकला का प्रथम प्रमाणिक ग्रंथ माना जाता है। इसको पंचवेद भी कहा जाता है। इस ग्रंथ का संकलन संभवत: दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में किया गया था, हालांकि इसमें उल्लेखित कलाएं काफी पुरानी हैं। इसमें 36 अध्याय हैं, जिनमें रंगमंच और नृत्य के लगभग सभी पहलुओं को दर्शाया गया है।

नृत्य या अभिव्यक्ति नृत्य, इसमें एक गीत के अर्थ को व्यक्त करने के लिए अंग, चेहरे का भाव, और मुद्राओं का उपयोग किया जाता है। नाट्यशास्त्र ने ही भाव और रस के सिद्धांत को प्रस्तुत किया और सभी मानवीय भावों को नौ रसों– श्रृंगार (प्रेम); वीर (वीरता); रुद्र (क्रूरता); भय (भय); बीभत्स (घृणा); हास्य (हंसी); करुण (करुणा); अदभुत (आश्चर्य); और शांत (शांति) में विभाजित करता है। नाट्यशास्त्र में वर्णित भारतीय शास्त्रीय नृत्य तकनीक दुनिया में सबसे विस्तृत और जटिल तकनीक है। इसमें 108 करण, खड़े होने के चार तरीके, पैरों और कूल्हों के 32 नृत्य-स्थितियां, नौ गर्दन की स्थितियां, भौंहों के लिए सात स्थितियां, 36 प्रकार के घूरने के तरीके और हाथ के इशारे शामिल हैं, जिसमें एक हाथ के लिए 24 और दोनों हाथों के लिए 13 स्थितियां दर्शाई गई हैं। जिनका अनुसरण आज भी किया जाता है।

Samyukta Hastas are also called as Double hand gestures or Combined hand gestures. Unlike Asamyukta hastas, these gestures require use of both the palms to convey the message or a particular meaning. For example the Anjali Mudra is a simple gesture where both the palms are joined to mean a Namskara or to imply salutations. I have also put some images of double hand gestures. Each gestures has its own uses which is termed as Viniyoga.

1. Anjali
2. Kapota
3. Karkata
4. Swastika
5. Dola
6. Pushpaputa
7. Utsanga
8. Shivalinga
9. Kataka-vardhana
10. Kartari-swastika
11. Shakata
12. Shankha
13. Chakra
14. Pasha
15. Kilaka
16. Samputa
17. Matsya
18. Kurma
19. Varaha
20. Garuda
21. Naagabandha
22. Khatava
23. Bhairunda
24. Avahita