Tatkar (तत्कार): कथक नृत्य में पैरों एवं पैरों में बंधे घुंगरूंओं से जो ध्वनि की उत्पत्ति होती है उसे तत्कार कहते है| कथक नृत्य में इसका भारी महत्व है|ता ,थे, ई ,इन नृत्य के वर्णों से बनी छंद रचना को ततकार कहा गया था जो की अपभ्रंश रूप में तत्कार के नाम से प्रचलित हो गया व्याख्या किया गया है की ‘ता’ का अर्थ है तन,’था से थल ,और ई से ईश्वर,यथार्थ तन से थल पर जो भी नृत्य करो वह ईश्वर के लिए करो| तत्कार के द्वारा नृत्यकार विभिन्न लयकारी एवं बोलों को प्रस्तुत करता है|प्रत्येक ताल के मात्रा , विभाग , और ठेके के अनुसार उनके तत्कार होतें है|तत्कार के अलग अलग बोलों की निकासी पैरों के अलग स्थानों को अलग तरीके से चोट करने पर निकलती है|
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